लाख की चूड़ियाँ//LAKH KI CHUDIYA GRADE 8TH पाठ की व्याख्या,सारांश और प्रश्नोत्तर
TABLE OF CONTENT
- लेखक परिचय
- लाख की चूड़ियाँ – कहानी की व्याख्या(Explanation)
- ”लाख की चूड़ियाँ’ पाठ का सारांश
- लाख की चूड़ियाँ पाठ पर आधारित प्रश्नोत्तर
लेखक परिचय
लेखक का नाम: कामतानाथ
हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक कामतानाथ जी का जन्म 22सितंबर 1935 को लखनऊ में हुआ था। लखनऊ विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी साहित्य में उन्होंने एम.ए. किया। तत्पश्चात 1955 में उन्होंने रिजर्व बैंक में नौकरी कर ली। बचपन से ही उनकी रुचि साहित्य के प्रति थी। उन्होंने देशी-विदेशी अनेक रचनाकारों की कृतियों का अध्ययन किया। यही रुचि बाद में उनके साहित्य सृजन में सहायक हुई।
उनकी रचनाएँ सरल सहज बोलचाल की भाषा में लिखी गईं हैं । उनके साहित्य में समाज के उपेक्षित वर्ग की समस्याएँ और पीड़ा प्रकट हुई है।
उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में ’समुद्र तट पर खुलने वाली खिड़की ’, ’सुबह होने तक’, ’एक और हिंदुस्तान ’, ’तुम्हारे नाम’ काल-कथा (दो खंड) और पिघलेगी बर्फ आदि हैं । इसके अतिरिक्त ’छुट्टियाँ ’, ’तीसरी साँस ’, ’सब ठीक हो जाएगा ’,’रिश्ते-नाते’, ’आकाश से झाँकता वह चेहरा”, ’सोवियत संघ का पतन क्यों हुआ ’ और ’लाख की चूड़ियाँ ’ उनकी प्रसिद्ध कहानियों में से हैं।विश्वउन्हें हिंदी साहित्य संस्थानकी ओर से ‘साहित्य भूषण’ पुरस्कार,’यशपाल पुरस्कार’,और ‘महात्मा गांधी सम्मान’ प्राप्त हो चुका है।उन्हें मध्य प्रदेश साहित्य परिषद की ओर से ‘मुक्तिबोध पुरस्कार’ प्रदान किया गया।
लाख की चूड़ियाँ – कहानी की व्याख्या(Explanation)
गद्यांश: सारे गाँव में बदलू मुझे सबसे अच्छा आदमी लगता था क्योंकि वह मुझे सुंदर-सुंदर लाख की गोलियाँ बनाकर देता था। मुझे अपने मामा के गाँव जाने का सबसे बड़ा चाव यही था कि जब मैं वहाँ से लौटता था तो मेरे पास ढेर सारी गोलियाँ होतीं, रंग-बिरंगी गोलियाँ जो किसी भी बच्चे का मन मोह लें।
व्याख्या: इस कथा को लेखक ने जनार्दन नामक युवक के रूप में लिखा है जो अपने मामा के गाँव आता है। उसे अपने बचपन के क्षण याद आते हैं जब वह बच्चा था और बदलू नाम के हस्तशिल्पी से मिलता था। यह कहानी लेखक ने आत्म कथ्यात्मक रूप से लिखी है।अतः लगता है मानो लेखक अपने ही संस्मरण सुना रहा है। कथानायक जब एक छोटा बच्चा था तो उसे पूरे गाँव में सिर्फ़ एक आदमी बदलू ही अच्छा लगता था क्योंकि बदलू उसे सुंदर लाख की गोलियाँ बना कर देता था। बच्चा अपने मामा के गाँव हर वर्ष गरमियों की छुट्टियों में जाता था तो वहाँ जाने में उसके उत्साह का कारण यह भी होता था कि वापसी में उसके पास बहुत सारी रंग-बिरंगी लाख की गोलियाँ होती थी जो किसी भी बच्चे के मन को प्रसन्न कर सकती थी। बदलू बच्चे के मामा के गाँव का था इसलिए बदलू उसे रंग-बिरंगी लाख की गोलियाँ देकर विशेष प्रेम दिखाता था।
गद्यांश: वैसे तो मेरे मामा के गाँव का होने के कारण मुझे बदलू को ‘बदलू मामा’ कहना चाहिए था परंतु मैं उसे ‘बदलू मामा’ न कहकर बदलू काका कहा करता था जैसा कि गाँव के सभी बच्चे उसे कहा करते थे। बदलू का मकान कुछ ऊँचे पर बना था। मकान के सामने बड़ा-सा सहन था जिसमें एक पुराना नीम का वृक्ष लगा था। उसी के नीचे बैठकर बदलू अपना काम किया करता था। बगल में भट्ठी दहकती रहती जिसमें वह लाख पिघलाया करता। सामने एक लकड़ी की चौखट पड़ी रहती जिस पर लाख के मुलायम होने पर वह उसे सलाख के समान पतला करके चूड़ी का आकार देता। पास में चार-छह विभिन्न आकार की बेलननुमा मुँगेरियाँ रखी रहती जो आगे से कुछ पतली और पीछे से मोटी होतीं। लाख की चूड़ी का आकार देकर वह उन्हें मुँगेरियों पर चढ़ाकर गोल और चिकना बनाता और तब एक-एक कर पूरे हाथ की चूड़ियाँ बना चुकने के पश्चात वह उन पर रंग करता।
https://amzn.to/3xfcixEव्याख्या: बदलू जनार्दन नाम के बच्चे के मामा के गाँव का था । समाज के नियमों के अनुसार अकसर हम अपने माँ की तरफ़ के लोगों से आयु के अनुसार नाना, मामा , मौसी आदि और पिता की तरफ़ के व्यक्तियों को दादाजी, चाचा , बुआ आदि कहते हैं । इसी अलिखित नियम के अनुसार बच्चे को भी बदलू को मामा कहना चाहिए था किंतु वह बदलू को काका अर्थात चाचा ही कहता था इसका कारण वह बताता है कि उसके हम उम्र गाँव के अन्य बच्चे उसे चाचा कहते थे ,इसी कारण कथा नायक यह बच्चा भी बदलू को उन बच्चों के तरह ही काका कहता था| बदलू का मकान एक ऊँची जगह पर बना था । मकान के सामने एक बड़ा सा बरामदा था और बरामदे में एक पुराना नीम का पेड़ लगा था। उसी पेड़ के नीचे बदलू ने अपने काम करने की जगह बना रखी थी । यहीं बैठकर वह लाख की चूड़ियाँ बनाता था। पास ही में एक भट्टी रखी थी जिसमें गरम करके वह लाख को मुलायम करने के लिये पिघलाता था। सामने एक चौखट या मेज थी जिसमें रखकर मुलायम लाख को पतली और छोटी छड़ी जैसा बना कर चूड़ी का आकार देता। उसके पास चार से छह मुँगेरियाँ रखी रहती जो बेलन के जैसे आकार की होती थीं । ये मुंगेरियाँ आगे से कुछ पतली और पीछे से मोटी होतीं। चूड़ी का आकार देने के बाद बदलू इन्हीं मुँगेरियों पर उन्हें चढ़ाता और गोल आकार देता साथ ही चिकना भी बनाता। । एक बार सारी चूड़ियाँ बन जाती तो फिर वह इन चूड़ियों को रंगता।
गद्यांश: बदलू यह कार्य सदा ही एक मचिये पर बैठकर किया करता था जो बहुत ही पुरानी थी। बगल में ही उसका हुक्का रखा रहता जिसे वह बीच-बीच में पीता रहता। गाँव में मेरा दोपहर का समय अधिकतर बदलू के पास बीतता। वह मुझे ‘लला” कहा करता और मेरे पहुँचते ही मेरे लिए तुरंत एक मचिया मँगा देता। मैं घंटों बैठे-बैठे उसे इस प्रकार चूड़ियाँ बनाते देखता रहता। लगभग रोज ही वह चार-छह जोड़े चूड़ियाँ बनाता। पूरा जोड़ा बना लेने पर वह उसे बेलन पर चढ़ाकर कुछ क्षण चुपचाप देखता रहता मानो वह बेलन न होकर किसी नव-वधू की कलाई हो।
व्याख्या: चूड़ी बनाने के लिये बदलू स्वयं एक छोटी चोकोर चारपाई, जिसे मचिया कहा जाता है , हमेशा उस पर बैठ कर ही करता। यह मचिया बहुत ही पुरानी थी । साथ ही बदलू हुक्का पीने का भी शौकीन था तो काम के साथ-साथ बीच-बीच में हुक्का भी गुड़गुड़ाता रहता थ। कथानायक एक छोटा बच्चा था । उसे चूड़ियाँ बनते देखना बहुत पसंद था अतः उसका दोपहर का समय अकसर बदलू को चूड़िया बनाते देखते ही गुजरता। चूंकि बालक जनार्दन से बदलू का गाँव की बहन- बेटी के बेटे होने अर्थात भांजे का रिश्ता था इसलिए बदलू उसको प्यार के साथ आदर भी देता था । वह जनार्दन के जाते ही उसके बैठने के लिए एक मचिया मँगवा देता। वहाँ बैठ कर बच्चा देरतक बदलू को लाख की चूड़ियाँ बनाते देखता। एक दिन में बदलू चार से छह जोड़े चूड़ियाँ बना लेता। चूड़ियाँ बनाने के बाद बदलू उन्हें एक बेलन में चढ़ा देता और बड़े प्यार से कुछ समय तक उन्हें इस तरह देखता मानों वह बेलन की जगह किसी नई विवाहित बहू को पहनाई गई हों।
गद्यांश:बदलू मनिहार था। चूड़ियाँ बनाना उसका पैतृक पेशा था और वास्तव में वह बहुत ही सुंदर चूड़ियाँ बनाता था। उसकी बनाई हुई चूड़ियों की खपत भी बहुत थी। उस गाँव में तो सभी स्त्रियाँ उसकी बनाई हुई चूड़ियाँ पहनती ही थीं आस-पास के गाँवों के लोग भी उससे चूड़ियाँ ले जाते थे। परंतु वह कभी भी चूड़ियों को पैसों से बेचता न था। उसका अभी तक वस्तु-विनिमय का तरीका था और लोग अनाज के बदले उससे चूड़ियाँ ले जाते थे। बदलू स्वभाव से बहुत सीधा था। मैंने कभी भी उसे किसी से झगड़ते नहीं देखा। हाँ, शादी-विवाह के अवसरों पर वह अवश्य जिद पकड़ जाता था। जीवन भर चाहे कोई उससे मुफ़्त चूड़ियाँ ले जाए परंतु विवाह के अवसर पर वह सारी कसर निकाल लेता था। आखिर सुहाग के जोड़े का महत्त्व ही और होता है। मुझे याद है, मेरे मामा के यहाँ किसी लड़की के विवाह पर जरा-सी किसी बात पर बिगड़ गया था और फिर उसको मनाने में लोहे लग गए थे। विवाह में इसी जोड़े का मूल्य इतना बढ़ जाता था कि उसके लिए उसकी घरवाली को सारे वस्त्र मिलते, ढेरों अनाज मिलता, उसको अपने लिए पगड़ी मिलती और रुपये जो मिलते सो अलग।
व्याख्या: बदलू मनिहार था। मनिहार उन लोगों को कहते हैं जो चूड़ियों से संबंधित व्यवसाय करते हैं जैसे- चूड़ी बनाना , बेचना आदि। यही उसका पुश्तैनी व्यवसाय था। अर्थात बदलू के सभी पूर्वज पीढ़ियों से चूड़ियाँ बनाने और बेचने का काम करते चले आ रहे थे। बदलू की बनाई चूदइयाँ सुंदर थी इसलिए न केवल उस गाँव की बल्कि आस-पास के गाँवों की स्त्रियाँ भी उसी से चूड़ी लेती थी। इसी कारण वह जितनी चूड़ियाँ बनाता वे बिक जाती किंतु बदलू पैसों के बदले चूडियाँ न देकर सामान या अनाज के बदले चूडियाँ बेचता था। जब रुपयों -पैसों की जगह किसी सामान या वस्तु के बदले दूसरा सामान लिया जाता है तो ऐसी व्यवस्था को वस्तु-विनिमय कहते हैं। गाँव में अधिकतर लोग खेती करते हैं और उन के पास अनाज होता है अतः वे उन लोगों से जो खेती की जगह अन्य व्यवसाय करते हैं, रुपयों के स्थान अनाज देकर सामान लेते हैं। बदलू भी चूड़ियों के बदले अनाज लेता था। यद्यपि बदलू सरल स्वभाव का था और किसी से लड़ता -झगड़ता न था। अगर किसी के पास अनाज न हो तो वह उनको मुफ़्त भी चूड़ियाँ दे देता था। किंतु शादी-ब्याह के अवसर पर अपने मन-माना मूल्य वसूलता था। इसका कारण यह था कि चूड़ियाँ सौभाग्य का प्रतीक होती हैं और नव विवाहित दुलहन के लिए पहला सुहाग का जोड़े के रूप में दी जाने वाली चूड़ियों का विशेष महत्व होता है। इसलिए बदलू जिद पकड़ लेता और अपनी इच्छा के अनुसार दाम वसूलता। कथानायक जनार्दन को याद था कि किस प्रकार उनके मामा के परिवार में किसी लड़की के विवाह पर बदलू नाराज हो गया तो उसे संतुष्ट करने में बहुत मेहनत लगी ।विवाह में चूड़ियों के जोड़े का मूल्य इतना बढ़ जाता था कि उसके लिए बदलू की पत्नी को ढेर सारे कपड़े मिलते, ढेरों अनाज मिलता, उसको अपने लिए पगड़ी मिलती और रुपये जो मिलते सो अलग। इस प्रकार हम देखते हैं कि गाँव में बदलू का विशेष मान और नियम थे जिनका वह और गाँव के लोग सम्मान करते थे।
https://amzn.to/3xfcixE https://amzn.to/43xsw1bगद्यांश:यदि संसार में बदलू को किसी बात से चिढ़ थी तो वह थी काँच की चूड़ियों से। यदि किसी भी स्त्री के हाथों में उसे काँच की चूड़ियाँ दिख जाती तो वह अंदर-ही-अंदर कुढ़ उठता और कभी-कभी तो दो-चार बातें भी सुना देता। मुझसे तो वह घंटों बातें किया करता। कभी मेरी पढ़ाई के बारे में पूछता, कभी मेरे घर के बारे में और कभी यों ही शहर के जीवन के बारे में। मैं उससे कहता कि शहर में सब काँच की चूड़ियाँ पहनते हैं तो वह उत्तर देता, “शहर की बात और है, लला! वहाँ तो सभी कुछ होता है। वहाँ तो औरतें अपने मरद का हाथ पकड़कर सड़कों पर घूमती भी हैं और फिर उनकी कलाइयाँ नाजुक होती हैं न! लाख की चूड़ियाँ पहनें तो मोच न आ जाए।”
व्याख्या: बदलू को काँच की चूड़ियों से चिढ़ थी और गाँव की किसी भी स्त्री को काँच की चूड़ियाँ पहने देखकर वह भीतर ही भीतर बहुत गुस्सा हो जाता साथ ही अवसर पाने पर काँच की चूड़ी पहनने वाली स्त्री को कुछ खरी-खोटी सुना भी देता। इसका कारण यह है कि काँच की चूड़ियाँ मशीन से बनती हैं और इन्हें पहनने से बदलू जैसे हाथ से काम करने वाले कारीगरों के व्यवसाय पर असर पड़ता है। दूसरी बात , तब गाँवों में लाख की चूड़ियों का ही प्रचलन था और लाख की चूड़ियाँ ही सुहाग की प्रतीक समझी जाती थीं।बदलू जनार्दन से बहुत सारी बातें पूछता , जैसे- उनके घर के बारे में , पढ़ाई और शहरी जीवन के बारे में। जब जनार्दन उनको बताता कि शहर में तो सभी महिलाएँ काँच की चूड़ियाँ पहनती हैं तो वह वहाँ के जीवन को थोड़ा उपेक्षित बताते हुए कहता कि शहर में सब चलता है और वहाँ की महिलाएँ तो सबके सामने अपने पति का हाथ पकड़कर घूमती हैं और उनकी कलाइयाँ भी नाजुक होती है तो कहीं लाख की मजबूत और भारी चूड़ियों से उन्हें मोच न आ जाए। इस तरह वह काँच की चूड़ियाँ पहनने वाली स्त्रियों का उपहास करता।
गद्यांश:-कभी बदलू मेरी अच्छी खासी खातिर भी करता। जिन दिनों उसकी गाय के दूध होता वह सदा मेरे लिए मलाई बचाकर रखता और आम की फसल में तो मैं रोज ही उसके यहाँ से दो-चार आम खा आता। परंतु इन सब बातों के अतिरिक्त जिस कारण वह मुझे अच्छा लगता वह यह था कि लगभग रोज ही वह मेरे लिए एक-दो गोलियाँ बना देता।
https://amzn.to/43xsw1bव्याख्या: चूंकि बालक जनार्दन गाँव के रिश्ते से मेहमान था अतः बदलू उसकी अच्छी मेहमान नवाजी करता। वह बच्चे को अपनी गाय के दूध की मलाई खिलाता। अपने आम के बगीचे के आम खिलाता इतना ही नहीं , बच्चे को प्रसन्न करने के लिए वह रोज़ उसे लाख की एक दो रंगीन गोलियाँ देता। लाख की यह रंगीन गोलियाँ पाकर बच्चा बहुत खुश हो जाता । इसी वजह से उसे बदलू के घर जाना बहुत पसंद था।
गद्यांश:मैं बहुधा हर गर्मी की छुट्टी में अपने मामा के यहाँ चला जाता और एक-आध महीने वहाँ रहकर स्कूल खुलने के समय तक वापस आ जाता। परंतु दो-तीन बार ही मैं अपने मामा के यहाँ गया होऊँगा तभी मेरे पिता की एक दूर के शहर में बदली हो गई और एक लंबी अवधि तक मैं अपने मामा के गाँव न जा सका। तब लगभग आठ-दस वर्षों के बाद जब मैं वहाँ गया तो इतना बड़ा हो चुका था कि लाख की गोलियों में मेरी रुचि नहीं रह गई थी। अतः गाँव में होते हुए भी कई दिनों तक मुझे बदलू का ध्यान न आया। इस बीच मैंने देखा कि गाँव में लगभग सभी स्त्रियाँ काँच की चूड़ियाँ पहने हैं। विरले ही हाथों में मैंने लाख की चूड़ियाँ देखीं। तब एक दिन सहसा मुझे बदलू का ध्यान हो आया। बात यह हुई कि बरसात में मेरे मामा की छोटी लड़की आँगन में फिसलकर गिर पड़ी और उसके हाथ की काँच की चूड़ी टूटकर उसकी कलाई में घुस गई और उससे खून बहने लगा। मेरे मामा उस समय घर पर न थे। मुझे ही उसकी मरहम-पट्टी करनी पड़ी। तभी सहसा मुझे बदलू का ध्यान हो आया और मैंने सोचा कि उससे मिल आऊँ। अतः शाम को मैं घूमते-घूमते उसके घर चला गया। बदलू वहीं चबूतरे पर नीम के नीचे एक खाट पर लेटा था।
व्याख्या: पहले बालक जनार्दन हर छुट्टियों में अपने मामा के घर जाया करता था और एक-आधा महीना रह कर ही लौटता था किंतु पिता का तबादला दूर के शहर होने से वह लंबे समय तक मामा के गाँव न आ सका। बाद में कभी आया भी तो बड़े हो जाने के कारण लाख की गोलियों में उसका आकर्षण न रहा । अतः गाँव में होते हुए भी वह बदलू के घर न गया। इसी बीच एक बड़ा बदलाव यह हुआ कि अब गाँव मे सभी स्त्रियाँ काँच की चूड़ियाँ पहनने लगीं। विरले ही किसी ने लाख की चूड़ियाँ पहनी हों । अचाल्नक एक दिन जनार्दन की छोटी ममेरी बहिन बरसात के कारण आँगन में फिसल कर गिर गई। उसके हाथों में काँच की चूड़ी थीं ।चूड़ी का काँच टूटकर उसकी कलाई में घुस गया और खून बहने लगा। मामा उस समय घर में न थे । अतः जनार्दन को ही उसकी मरहम-पट्टी करानी पड़ी। तभी सहसा उसे लाख की चूड़ियों का महत्त्व याद आया। लाख की चूड़ियाँ मजबूत होती हैं और आसानी से नहीं टूटतीं। लाख की चूड़ियों की याद आते ही उसे बदलू की याद आ गई और उससे मिलने की इच्छा हुई । इसलिए शाम को वह बदलू से मिलने उसके घर जा पहुँचा। उस समय बदलू उसी पुराने नीम मे नीचे बने चबूतरे पर रखी खाट पर लेटा आराम कर रहा था।
https://amzn.to/43xsw1b https://amzn.to/3VvKyPzगद्यांश: नमस्ते बदलू काका। मैंने कहा। नमस्ते भइया! उसने मेरी नमस्ते का उत्तर दिया और उठकर खाट पर बैठ गया।
परंतु उसने मुझे पहचाना नहीं और देर तक मेरी ओर निहारता रहा। मैं हूँ जनार्दन, काका! आपके पास से गोलियाँ बनवाकर ले जाता था। मैंने अपना परिचय दिया।
बदलू फिर भी चुप रहा। मानो वह अपने स्मृति पटल पर अतीत के चित्र उत्तार रहा हो और तब वह एकदम बोल पड़ा, आओ-आओ, लला बैठो! बहुत दिन बाद गाँव आए।
हाँ, इधर आना नहीं हो सका, काका! मैंने चारपाई पर बैठते हुए उत्तर दिया।
कुछ देर फिर शांति रही। मैंने इधर इधर दृष्टि दौडाई। न तो मुझे उसकी मचिया ही नजर आई. न ही भट्टी।
आजकल काम नहीं करते काका? मैंने पूछा।
व्याख्या: जनार्दन ने बदलू को नमस्ते किया । उसे देखकर बदलू ने नमस्ते का उत्तर दिया और उठकर खाट पर बैठ गया। परंतु उसने जनार्दन को पहचाना नहीं और देर तक उसकी ओर निहारता रहा। तब जनार्दन ने अपना नाम बताते हुए अपना परिचय दिया। और , गोलियाँ बनवाकर ले जाने वाली बात याद दिलाकर अपना स्मरण कराने की कोशिश की। थोड़ी देर बदली मानो सोचता रहा , फिर उसे याद आ गई और अपने चिर-परिचित अंदाज में जनार्दन को बचपन की तरह ”लाला’ कहकर पुकारते हुए बठने को कहा और बहुत दिनों बाद आने का कारण पूछा। जनार्दन ने बताया कि कुछ सालों से वह गाँव न आ सका । थोड़ी देर शांति छाई रही । जनार्दन ने ध्यान दिया कि वहाँ पेड़ के नीचे अब लाख की चूड़ियाँ बनाने का सामान , मचिया और भट्टी आदि नहीं थे अतः उसने बदलू के काम के बारे में पूछा।
गद्यांश:नहीं लला, काम तो कई साल से बंद है। मेरी बनाई हुई चूड़ियाँ कोई पूछे तब तो। गाँव-गाँव में काँच का प्रचार हो गया है। वह कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, मशीन युग है न यह, लला! आजकल सब काम मशीन से होता है। खेत भी मशीन से जोते जाते हैं और फिर जो सुंदरता काँच की चूड़ियों में होती है. लाख में कहाँ संभव है?
लेकिन काँच बड़ा खतरनाक होता है। बड़ी जल्दी टूट जाता है। मैंने कहा। नाजुक तो फिर होता ही है लला! कहते-कहते उसे खाँसी आ गई और वह देर तक खाँसता रहा।
मुझे लगा उसे दमा है। अवस्था के साथ-साथ उसका शरीर ढल चुका था। उसके हाथों पर और माथे पर नसें उभर आई थीं।
व्याख्या: बदलू ने बताया कि गाँव -गाँव काँच की चूड़ियों के प्रचलन से लाख की चूड़ियाँ पहनना बंद हो चुका है। अतः उसका व्यवसाय ठप्प हो चुका है। सिर्फ़ लाख की चूड़ियों का व्यवसाय ही प्रभावित नहीं हुआ बल्कि मशीनों के प्रयोग से अन्य लोगों के रोजगार भी प्रभावित हुए हैं मशीनों द्वारा खेती होने से खेतिहर मज़दूरों पर असर पड़ा है। मशीनों से काम जल्दी और सुव्यवस्थित तरह से होता है। अतः लाख की चूड़ियों की तुलना में काँच की चूड़ियों जैसी सुंदरता नहीं आ पाती। जब जनार्दन ने काँच की चूड़ियों के जल्दी टूटने और उससे होने वाले खतरे की बात की तो बदलू ने काँच के नाहुक होने की बात मान ली। तभी बदलू को तेज़ खाँसी आ गई और वह देर तक खाँसता रहा। जनार्दन को आशंका हुई कि मानो बदलू को दमा (खाँसी की एक बीमारी) हो क्योंकि उम्र के कारण बदलू बहुत कमजोर हो गया था उसके माथे और हाथों में नसें उभरी हुई दिख रही थी
https://amzn.to/3VvKyPzगद्यांश:जाने कैसे उसने मेरी शंका भाँप ली और बोला, “दमा नहीं है मुझे। फसली खाँसी है। यही महीने-दो महीने से आ रही है। दस-पंद्रह दिन में ठीक हो जाएगी।”
मैं चुप रहा। मुझे लगा उसके अंदर कोई बहुत बड़ी व्यथा छिपी है। मैं देर तक सोचता रहा कि इस मशीन युग ने कितने हाथ काट दिए हैं। कुछ देर फिर शांति रही जो मुझे अच्छी नहीं लगी।
आम की फसल अब कैसी है. काका? कुछ देर पश्चात मैंने बात का विषय बदलते हुए पूछा।
व्याख्या: जनार्दन की आशंका को बदलू पहचान गया और उसने कहा कि मुझे दमा नहीं बल्कि मौसमी खाँसी( एक तरह की एलर्जी) है जो कुछ दिनों बाद खुद ही ठीक हो जाएगी । जनार्दन बहुत देर तक चुप बैठा रहा और उसने अनुभव किया कि मशीनों के बढ़ते उपयोग के कारण अनेक व्यक्तियों के व्यवसाय छिन गए हैं और कई लोग बेरोजगार हो चुके हैं। वह बदलू के मन में छिपी पीड़ा को समझ सका। बात बढ़ाने के लिए उसने बदलू के आम की खेती के बारे में पूछा।
गद्यांश:‘अच्छी है लला, बहुत अच्छी है, उसने लहककर उत्तर दिया और अंदर अपनी बेटी को आवाज दी, अरी रज्जो, लला के लिए आम तो ले आ। फिर मेरी ओर मुखातिब होकर बोला, माफ़ करना लला, तुम्हें आम खिलाना भूल गया था।
नहीं, नहीं काका आम तो इस साल बहुत खाए हैं।
वाह-वाह, बिना आम खिलाए कैसे जाने दूँगा तुमको ?
मैं चुप हो गया। मुझे वे दिन याद हो आए जब वह मेरे लिए मलाई बचाकर रखता था।
गाय तो अच्छी है न काका? मैंने पूछा।
गाय कहाँ है, लला! दो साल हुए बेच दी। कहाँ से खिलाता?
इतने में रज्जो, उसकी बेटी, अंदर से एक डलिया में ढेर से आम ले आई।
यह तो बहुत हैं काका! इतने कहाँ खा पाऊँगा? मैंने कहा।
वाह-वाह! वह हँस पड़ा, शहरी ठहरे न! मैं तुम्हारी उमर का था तो इसके चौगुने आम एक बखत में खा जाता था।
आप लोगों की बात और है। मैंने उत्तर दिया।
https://amzn.to/3VvKyPzव्याख्या: इस पर खुश होकर बदलू ने फ़सल अच्छी होने की बात बताई और अपनी बेटी को आम खिलाने को कहा। जनार्दन के मनाकरने पर उसने अधिकार पूर्वक उसे आम खिलाने की बात की। जनार्दन को बचपन में मलाई खाने की याद आई अतः उसने बदलू से गाय के बारे में पूछा। बदलू ने निराश होते हुए गाय बेच देने की बात बताई। उसने बताया कि गाय को खिलाने के लिए उसके पास चारा न था। इतने में बदलू की बेटी रज्जो टोकरी भर आम ले आई । जनार्दन ने कहा कि इतने सारे आम न खा पाऊँगा तो बदलू ने मजाक करते हुए कहा कि शहरी जो ठहरे । बदलू ने उसे कहा कि तुम्हारी उम्र में मैं इसके चौगुने आम खा जाता था तब जनार्दन ने बात टालते हुए कहा कि आप लोगों की बात ही कुछ और थी।
गद्यांश:अच्छा, बेटी, लला को चार-पाँच आम छाँटकर दो। सिंदूरी वाले देना। देखो लला कैसे हैं? इसी साल यह पेड़ तैयार हुआ है।
रज्जो ने चार-पाँच आम अंजुली में लेकर मेरी ओर बढ़ा दिए। आम लेने के लिए मैंने हाथ बढ़ाया तो मेरी निगाह एक क्षण के लिए उसके हाथों पर ठिठक गई। गोरी गोरी कलाइयों पर लाख की चूड़ियाँ बहुत ही फब रही थीं।
व्याख्या: बदलू काका ने बताया कि यह इसी साल पहली बार फल देने वाले पेड़ के आम हैं।बदलू काका ने अपनी बेटी से कहा कि वह छाँट कर चार-पाँच बढ़िया सिंदूरी आम जनार्दन को दे दे। ’सिंदूरी’ आम की एक किस्म की होती है जो कि लाल रंग के सुगंधित अच्छे और मीठे आम माने जाते होती है। बदलू ने कहा कि आम उसी मौसम में तैयार हुए थे और बहुत बढ़िया थे। रज्जो ने चार-पाँच आम अपनी हथेली में लेकर लेखक की ओर बढ़ा दिए।जनार्दन ने हाथ बढ़ाया तो उसकी निगाहें एक पल के लिए उसके हाथों पर अटक सी गई। रज्जो के हाथों की गोरे गोरे हाथों की कलाइयों पर लाख की चूड़ियाँ बहुत सुन्दर लग रही थी। अभी भी बदलू काका की बेटी ने वहीं लाख की चूड़ियाँ पहने हुए थीं ।
गद्यांश: बदलू ने मेरी दृष्टि देख ली और बोल पड़ा, यही आखिरी जोड़ा बनाया था जमींदार साहब की बेटी के विवाह पर। दस आने पैसे मुझको दे रहे थे। मैंने जोड़ा नहीं दिया। कहा, शहर से ले आओ।
मैंने आम ले लिए और खाकर थोड़ी देर पश्चात चला आया। मुझे प्रसन्नता हुई कि बदलू ने हारकर भी हार नहीं मानी थी। उसका व्यक्तित्व काँच की चूड़ियों जैसा न था कि आसानी से टूट जाए।
व्याख्या: बदलू ने जनार्दन की नज़र देख ली । वो लेखक के मन की बात को भाँप गया । बदलू ने जनार्दन को बताया कि यह उसका बनाया आखिरी जोड़ा है। गाँव के जमींदार साहब की बेटी के विवाह पर बनाया था। उसके बदले में वे उसे मात्र दस आने दे रहे थे । उसने लाख की चूड़ियों का जोड़ा देने से इन्कार कर दिया, कहा कि आप शहर से ले आओ। इसका कारण यह था कि यह कीमत बहुत कम थी। बदलू के लिए लाख की चूड़ियाँ मात्र चूड़ियाँ नहीं थीं बल्कि उनके आत्म-गौरव व उसूलों का प्रतीक थीं। जनार्दन ने महसूस किया कि भले ही मशीनी युग की वजह से बदलू काका का काम-धन्धा बन्द हो गया था लेकिन वह हारे नहीं थे। वह पीछे नहीं हटे थे ।उसका व्यवहार काँच की कच्ची चूड़ियों के समान न नाजुक नहीं था बल्कि लाख की तरह मज़बूती लिये हुए था।
”लाख की चूड़ियाँ’ पाठ का सारांश
इस पाठ में लेखक कामतानाथ जी ने जनार्दन नाम के एक बालक के माध्यम से ग्रामीण जीवन का चित्रण किया है । बालक अपने बचपन की मधुर स्मृतियों को समेटे लंबे अरसे बाद गाँव वापस जाता है किंतु वहाँ पर मशीनों के प्रयोग के बढ़ते चलन से बदलती हुई परिस्थियों को देखता है। बदलू जो कि एक मनिहार है मशीनों के आने से पहले उसके पास रोजगार था। ग्रामीण जीवन जहाँ पहले वस्तु-विनिमय द्वारा सामान का आदान-प्रदान होता था। जीवन सुखमय और संतोषमय दिखता है। कहानी का मुख्य पात्र बदलू बिना मूल्य के भी चूड़ियाँ दे देता है। किंतु शादी ब्याह के अवसर पर अपनी जिद मनवाता है।जनार्दन के मामा के घर विवाह के अवसर पर बदलू को संतुष्ट करने के लिए काफी प्रयत्न करने पड़े थे। विवाह आदि शुभ अवसरों में बदलू की घरवाली को सारे वस्त्र मिलते, ढेरों अनाज मिलता, उसको अपने लिए पगड़ी मिलती और रुपये अलग से मिलते। इस प्रकार वह व्यक्ति भी समाज का सम्मानित और महत्त्वपूर्ण व्यक्ति साबित होता है जो दुलहन के लिए सुहाग का चूड़ियों का जोड़ा बनाता है। इस तरह एक हस्त शिल्पी का भी बराबर महत्व और सम्मान है । बाद में मशीनों के प्रचलन से बदलू के जैसे हस्तशिल्पी बेरोजगार हो जाते हैं। खेती आदि में भी मशीनों के उपयोग से मज़दूर वर्ग के जीवन पर असर पड़ा।मशीनों के उपयोग से न केवल कारीगरों की आर्थिक स्थिति पर ही बुरा प्रभाव पड़ा अपितु उनकी सामाजिक स्थिति भी बिगड़ी। हम देखते हैं कि बदलू अपना बनाया आखिरी सुहाग का जोड़ा वापस ले आया। क्योंकि जमींदार साहब उसके बहुत कम मूल्य दे रहे थे।और बदलू के इतने कम मूल्य पर चूड़ियाँ देने से मना करने पर किसी ने उसे मनाने की जहमत नहीं उठाई। अंततः बदलू को आखिरी जोड़ा बिना बेचे ही वापस लाना पड़ा। इस प्रकार ” लाख की चूड़ियाँ’ पाठ के द्वारा लेखक समाज की बदलती हुई स्थिति का सजीव चित्रण करने में सफल हो सके।
लाख की चूड़ियाँ पाठ पर आधारित प्रश्नोत्तर
1.प्रश्न-अभ्यास
1. बचपन में लेखक अपने मामा के गाँव चाव से क्यों जाता था और बदलू को ‘बदलू मामा’ न कहकर ‘बदलू काका’ क्यों कहता था?
उत्तर: बचपन में लेखक अपने मामा के गाँव चाव से इसलिए जाता था क्योंकि बदलू उसे सुंदर-सुंदर लाख की गोलियाँ बनाकर देता था और गाँव से वापस लौटने पर लेखक के पास ढेर सारी लाख की रंगीन गोलियाँ होती थीं। गाँव के रिश्ते से लेखक को बदलू को मामा कहकर पुकारना चाहिए था लेकिन वह ’बदलू मामा’ न कहकर ‘बदलू काका’ ही कहता था क्योंकि गाँव के दूसरे हम उम्र बच्चे बदलू को काका ही कहते थे। अतः उनके साथ लेखक भी बदलू काका कहने लगा।
2. वस्तु-विनिमय क्या है? विनिमय की प्रचलित पद्धति क्या है?
उत्तर: जब किसी सामान या वस्तु के बदले दूसरा सामान लिया जाता है तो ऐसी व्यवस्था को वस्तु-विनिमय कहते हैं।अब मुद्रा-विनिमय की पद्धति प्रचलित है। इसमें किसी वस्तु का मूल्य रुपए-पैसों में निश्चित कर दिया जाता है और सामान के बदले रुपए दिए जाते हैं।
3. ‘मशीनी युग ने कितने हाथ काट दिए हैं।’ इस पक्ति में लेखक ने किस व्यथा की ओर संकेत किया है?
उत्तर: पहले समाज में अधिकांश काम हाथ से किये जाते थे। अनेक कारीगर अपने पैतृक व्यवसाय को अपनाकर उस कला को आगे बढ़ाते थे और अपना जीवन यापन करते थे। मशीनों के प्रयोग से कम व्यक्ति ,कम समय और कम लागत में अच्छी गुणवत्ता का सामान बनाने लगे। जिसके कारण हस्तउद्योग ठप्प पड़ गए और हाथ से काम करने वाले कारीगर बेरोजगार हो गए। इसी दुःख को को लेखक ने ’हाथ काट दिये” कह कर जताया अर्थात कारीगरों की बेरोजगारी की ओर संकेत किया है।
4. बदलू के मन में ऐसी कौन-सी व्यथा थी जो लेखक से छिपी न रह सकी।
उत्तर: बदलू का अपना पुश्तैनी काम ठप्प पड़ गया था और इसके साथ ही उसके मुख्य आय के साधन भी समाप्त हो गया । अब समाज में भी बदलू का पुराना महत्व खत्म हो गया। इस सबके कारण बदलू के आर्थिक स्थिति और स्वास्थ्य में बुरा प्रभाव पड़ा। बेरोजगारी की यह पीड़ा लेखक से छिपी न रह सकी।
5. मशीनी युग से बदलू के जीवन में क्या बदलाव आया?
उत्तर: मशीनी युग में गाँव की सभी स्त्रियाँ मशीन से बनी काँच की चूड़ियाँ पहनने लगी, जिससे बदलू का काम ठप्प हो गया। बदलू का पुश्तैनी रोजगार खत्म हो गया। बदलू को अपनी गाय बेचनी पड़ी। बदलू का स्वास्थ्य खराब रहने लगा । वह बहुत कमजोर हो गया। समाज में शादी-विवाह में उसका पहले वाला स्थान न रहा, जब उसे संतुष्ट करने के लिए लोग उसे कपड़े-अनाज-पगड़ी आदि देते थे। उसके काम की कद्र न रही। अंत में बदलू को अपना बनाया आखिरी लाख की चूड़ियों का जोड़ा बिना बेचे ही वापिस लाना पड़ा क्योंकि उसे बहुत ही कम दाम दिए जा रहे थे।
https://amzn.to/3VvKyPz2.कहानी से आगे
1. आपने मेले-बाजार आदि में हाथ से बनी चीजों को विकते देखा होगा। आपके मन में किसी चीज को बनाने की कला सीखने की इच्छा हुई हो और आपने कोई कारीगरी सीखने का प्रयास किया हो तो उसके विषय में लिखिए।
उत्तर: मेले में हस्त्कला की अनेक वस्तुएँ बिकने के लिये आती हैं । इनमें कुम्हार द्वारा बनाए मिट्टी के बरतन, घास की बनी चटाइयाँ , जूट के रंगीन बैग, लाख की चूड़ियाँ व अन्य सजावटी सामान , लकड़ी के खिलौने, कढ़ाई-बुनाई की वस्तुएँ आदि आते हैं । विद्यार्थी इनमें से किसी एक के बारे में तीन चार पंतियों में जानकारी दे सकते हैं।
2. लाख की वस्तुओं का निर्माण भारत के किन-किन राज्यों में होता है? लाख से चूड़ियों के अतिरिक्त क्या-क्या चीज बनती हैं? ज्ञात कीजिए।
उत्तर: लाख की चूड़ियाँ पहनने का प्रचलन बहुत पुराना है। भारत के उत्तरी राज्यों में तो पहले लाख की चूड़ियाँ को ही विशेषकर सुहाग का प्रतीक माना जाता था। इसीलिए राजस्थान -मालवा क्षेत्र इसके लिए बहुत प्रसिद्ध है। आज भी अनेक दस्तकार इस कुटीर उद्योग से जुडे हैं। इसके अलावा उत्तरप्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश और दिल्ली आदि में भी लाख की चूड़ियाँ बनाई जाती हैं। इनमें डिजाइन में भिन्नता और अपने-अपने क्षेत्र की कलाकारी और सजावट के कारण हर जगह की लाख की चूड़ियाँ अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं। लाख से मुख्य रूप से शृंगार की वस्तुएँ, खिलौने, सजावट का सामान बनता है। लाख को पेंट और वार्निश में भी प्रयोग किया जाता है। सरकारी दफ़्तरों में गुप्त दस्तावेजों को सील बंद करने के लिए भी लाख का उपयोग किया जाता है।
3.अनुमान और कल्पना
1. घर में मेहमान के आने पर आप उसका अतिथि सत्कार कैसे करेंगे?
उत्तर: घर में मेहमान आने पर उनको आदर से नमस्ते करेंगे। उन्हें बैठने का स्थान बताएँगे। उनके जल-पान की यथा संभव अच्छी व्यवस्था करेंगे।
2. आपको छुट्टियों में किसके घर जाना सबसे अच्छा लगता है? वहाँ की आपको छुट्टियों में किसके घर जाना सबसे अच्छा लगता है? वहाँ को दिनचर्या अलग कैसे होती है? लिखिए।
उत्तर: बच्चे अपने अनुभव के आधार पर नानाजी, दादाजी, चाचा जी, मामाजी, मौसी जी बुआजी या अपने मित्रों आदि के घर जाने के बारे में लिख सकते हैं और अपने घर से उनके घर की दिनचर्या का अंतर बता सकते हैं।
उदाहरण: मुझे गर्मियों की छुट्टियों में अपने नाना जी के घर जाना अच्छा लगता है। मेरे नाना जी का घर पर्वतीय क्षेत्र में होने से गर्मियों में यहाँ मौसम खुशगवार रहता है। मुझे नाना जी के घर इसलिए भी अच्छा लगता है कि वहाँ सब मुझे प्यार करते हैं और नानी मेरे मनपसंद खाने की चीजें बनाती हैं। यहाँ की दिनचर्या मेरे घर से अलग है क्योंकि नानाजी के घर में सब खेती करते हैं और किसी को ऑफ़िस जाने की जल्दी नहीं रहती , जबकि मेरे दोनों माता-पिता शहर में नौकरी करते हैं तो हमें जल्दी उठकर सब काम निपटाने होते हैं। नानाजी के घर में मैं देर तक सो सकता हूँ।
3. मशीनी युग में अनेक परिवर्तन आए दिन होते रहते हैं। आप अपने आस-पास से इस प्रकार के किसी परिवर्तन का उदाहरण चुनिए और उसके लिखिए।
उत्तर: मशीनी युग के आने से अनेक परिवर्तन हुए हैं । इनमें कुछ सकारात्मक हैं और कुछ नकारात्मक। मशीनों के कारण काम तेज़ी से और अच्छी गुणवत्ता युक्त होते हैं जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ जाती है। इसी कारण बेरोजगारी बढ़ गई। क्योंकि मशीन की सहायता से दस व्यक्तियों का काम एक व्यक्ति ही व्यक्ति कर लेता है। अनेक हाथ से काम करने वाले कारीगर बेरोजगार हो गए और अनेक कुटीर उद्योग समाप्त हो गए या होने की कगार में हैं। मशीनी युग आने से काम आसानी और सुविधा से हो जाते हैं । शारीरिक श्रम की आवश्यकता कम हो गई है। जिससे मज़दूर वर्ग के शारीरिक शोषण में कमी आई है। मशीनों को अपना दुश्मन न समझ कर उनका उचित उपयोग सीखना चाहिए। साथ ही स्वयं को नए-नए कौशलों से युक्त कर अपना विकास करने का प्रयास करना चाहिए।
4. बाजार में बिकने वाले सामानों की डिजाइनों में हमेशा परिवर्तन होता रहता है। आप इन परिवर्तनों को किस प्रकार देखते हैं? आपस में चर्चा कीजिए।
उत्तर: सभ्यता के विकास से ही मनुष्य में स्वयं को दूसरे से बेहतर दिखाने की प्रवृत्ति रही है। जिसके कारण वह दूसरे से हट कर सामान , वस्त्र और आभूषण पहना चाह्ता है और स्वयं को विशिष्ट दिखाना चाहता है। हम देखते हैं कि बाज़ार में बिकने वाले सामान के डिजायनों में हमेशा परिवर्तन होता रहता है, इसका प्रभाव यह होता है पुराने डिजाइन प्रचलन से बाहर हो जाते हैं । लोग उन्हें हीन नज़रों से देखने लगते हैं और आवश्यकता न होने पर भी उसे खरीदकर अपना खर्च बढ़ाते हैं। नया डिजाइन बहुत से लोगों को अनावश्यक खर्च करने को प्रेरित करता है । इससे लोगों का बज़ट बिगड़ भी सकता है और वह अनावश्यक तनाव और कर्ज़ में दब जाते हैं। मनुष्य को दिखावे की प्रवृत्ति पर लगाम लगानी चाहिए और सिर्फ़ दिखावे के लिए नई वस्तुएँ खरीदने की आदत से बचना चाहिए।
5. हमारे खान-पान, रहन-सहन और कपड़ों में भी बदलाव आ रहा है। इस बदलाव के पक्ष-विपक्ष में बातचीत कीजिए और बातचीत के आधार पर लेख तैयार कीजिए।
उत्तर: हम अपने आस-पास देखते हैं तो पाते हैं कि हमारे खान-पान, रहन-सहन और कपड़ों में भी बदलाव आ रहा है।भारतीय भोजन शैली जिसमें भोजन सामान्यतया ताज़ा और रसीला होता है। दिन में तीन बार पकाया और खाया जाता है। आज परंपरागत भारतीय शैली के वस्त्र में भी बदलाव आया है स्त्री-पुरुष दोनों ने ही परंपरागत धोती -कुर्ता और साड़ी आदि को त्योहारों तक सीमित कर दिया है नीचे इसके पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए कुछ बिंदु दिए गए हैं।
इस बदलाव के पक्ष में विचार: आजकल की जीवन शैली में बहुत परिवर्तन आया है। महिलाएँ भी अब नौकरी और व्यापार में बराबर योगदान दे रही हैं ऐसे में न तो परम्परागत वस्त्रों को रोज पहना जा सकता है जिन्हें पहनने में समय तो लगता ही है साथ ही उनके साथ काम करने, बस और नौकरी की दौड़-भाग में भी असुविधा होती है। न महिलाएँ दिन भर घर में भोजन ही पका सकती हैं । इसलिए आज विदेशी पकवान और डिब्बाबंद भोजन ने हमारे थाली में स्थान पा लिया है। पहले आवागमन सीमित था इसलिए भोजन के विकल्प भी सीमित थे। आज आवागमन और संस्कृतियों के मेल से दुनिया भर के व्यंजन हमारे पास मौजूद हैं तो क्यों न उनका आनंद उठाएँ।
इस बदलाव के विपक्ष में विचार: भारत एक उष्ण कटिबंधीय देश है। अतः यहाँ की जलवायु के अनुसार भारतीय परिधान सूती धोती , कुर्ता, साड़ी आदि रहे हैं जो शारीर के तापमान को नियंत्रित रखती है और हवा का आवागमन से शरीर का पसीना आदि सूखता रहता है। किंतु टाइट विदेशी जीन्स और शर्ट ने आज इन ढीले-ढाले सुविधाजनक वस्त्रों की जगह छीन ली है। लेकिन हमारी जलवायु के अनुसार यह परिधान उचित नहीं हैं इसीलिए आज के युवाओं को अनेक त्वचा संबंधी रोगों का सामना करना पड़ रहा है। इसी प्रकार भारतीय भोजन भी ऋतु-काल आदि आयुर्वेद के नियमों के अनुसार खाए जाते थे। मौसमी फलों और तरकारियों के सेवन से स्वास्थ्य अच्छा बना रहता था। ताज़ा और रसीला भोजन स्वास्थ्य वर्धक था किंतु डिब्बाबंद, बासी, प्रोसेस विदेशी भोजन को कभी-भी, कहीं भी पशुओं की तरह चरते रहने की आदत ने युवा वर्ग को कम आयु में ही हृदय रोग, मधुमेह, और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से ग्रस्त कर दिया है।
4. भाषा की बात
1 ‘बदलू को किसी बात से चिढ़ थी तो काँच की चूड़ियों से’ और बदलू स्वयं कहता है-“जो सुंदरता काँच की चूड़ियों में होती है लाख में कहाँ संभव है?” ये पक्तियाँ बदलू की दो प्रकार की मनोदशाओं को सामने लाती हैं। दूसरी पंक्ति में उसके मन की पीड़ा है। उसमें व्यंग्य भी है। हारे हुए मन से. या दुखी मन से अथवा व्यंग्य में बोले गए वाक्यों के अर्थ सामान्य नहीं होते। कुछ व्यंग्य वाक्यों को ध्यानपूर्वक समझकर एकत्र कीजिए और उनके भीतरी अर्थ की व्याख्या करके लिखिए।
नीचे कुछ व्यंग्य वाक्य दिए गए हैं –
1.भाई साहब दिन रात पढ़ते रहते थे और दिमाग को आराम देने के लिए किताबों और कॉपियों के हाशियों में कुत्तों , बिल्लियों और चिड़ियों के चित्र बनाते रहते थे।
2. धीरे-धीरे वृद्धा की आँखों की ज्योति जाने लगी। चाँदनी में रास्ता टटोलकर वह रेंग रही थी।
3.काँच बहुत कम बचे थे। जो बचे थे, उनसे हमें बचना था।
4.बस को देखा तो श्रद्धा उमड़ पड़ी। खूब वयोवृद्ध थी।
https://amzn.to/3VvKyPz2. ‘बदलू’ कहानी को दृष्टि से पात्र है और भाषा की बात (व्याकरण) की दृष्टि से संज्ञा है। किसी भी व्यक्ति, स्थान, वस्तु, विचार अथवा भाव को संज्ञा कहते हैं। संज्ञा को तीन भेदों में बाँटा गया है
(क) व्यक्तिवाचक संज्ञा, जैसे-लला, रज्जो आम काँच, गाय इत्यादि
(ख) जातिवाचक संज्ञा जैसे-चरित्र, स्वभाव, वजन, आकार आदि द्वारा जानी जाने वाली संज्ञाः
(ग) भाववाचक संज्ञा, जैसे-सुंदरता नाजुक, प्रसन्नता इत्यादि जिसमें कोई व्यक्ति नहीं है और न आकार या वजन। परंतु उसका अनुभव होता है।
पाठ से तीनों प्रकार की सज्ञाएँ चुनकर लिखिए।
उत्तर: क) व्यक्तिवाचक संज्ञा:जनार्दन, बदलू, जमींदार , नीम (ख) जातिवाचक संज्ञा: बेटी, स्त्री , गाँव , चबूतरा (ग) भाववाचक संज्ञा: व्यथा, लहकना, मज़बूती, पीड़ा।
3. गाँव की बोली में कई शब्दों के उच्चारण बदल जाते हैं। कहानी में बदलू वक्त (समय) को बखत उम्र (वय आयु) को उमर कहता है। इस तरह के अन्य शब्दों को खोजिए जिनका रूप में परिवर्तन हुआ हो. अर्थ में नहीं।
उत्तर: फसली खाँसी, मरद
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